किसी को ज़िद–ए–सिकंदरी की,तो किसी को तलब है मुमताज़ी का, मेरा ज़मीं–ए–फ़िरदौस है,दीदार–ए–सरकार का।

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Shachi

मैं शब्दों से घबराती हूँ ।

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