किसी को ज़िद–ए–सिकंदरी की,तो किसी को तलब है मुमताज़ी का, मेरा ज़मीं–ए–फ़िरदौस है,दीदार–ए–सरकार का। किसी को ज़िद–ए–सिकंदरी की,तो किसी को तलब है मुमताज़ी का, मेरा ज़मीं–ए–फ़िरदौस है,दीदार–ए–सरकार का। Share this:ShareTwitterFacebookLike Loading... Published by Shachi मैं शब्दों से घबराती हूँ । View all posts by Shachi
Beautiful 👌👌
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Shukran:)
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